इस कदर यूँ रुठा ना करो
के ख़ुदासे भरोसा उठ जाए
आँहे ऐसे तुम भरा ना करो
के दिलके शहरही लुट जाए
इस कदर यूँ ..
गुस्से से ऐसे सुर्ख हो गाल
और मुड़के चल देना तेरा
जुल्फोंको झटका ना करो
के चाँदसे चाँदनी टूट जाए
इस कदर यूँ ..
तेरी मस्त-निगाही से
बेमौत मर ना जाए कहीं
घायल कर यूँ हसा ना करो
के हमसे साँसही छूट जाए
इस कदर यूँ ..
इस कदर यूँ रुठा ना करो
ऐसा ना हो के तुमको अब
हम मनाही ना सके तो
खुदसेही कहीं ना रूठ जाए
इस कदर यूँ ..