बदलके ईन नजारोंको, जाने कितना बदलना है ? चाहे जितने बदलो, दर्याने किनारेपर रुकना है ! बदल बदल के लोगो, भूल जाओगे तुम बदलना यह भी तो मौसम है, आखिर इसने भी थमना है ! राख कर जाएगी, यह थम जाएगी जब आँधी भूल जाएगी यह मौत भी, के उसने भी आना है !
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फिर भी
तूफ़ान है मुक़र्रर, रातभर जलते आँखोंसे फिर भी गुजरा नहीं हूँ मैं .. उजड़ गए हैं आशियाने, ईन शाखोंसे फिर भी उतरा नहीं हूँ मैं .. बह ग़या है पानी, इस शहर के कई पुलोंसे बादलोने बदल दिए, आज सारे नक्श-ए-कोहन फिर भी मुकरा नहीं हूँ मैं
अल्फ़ाज कभी तो
मुझपे ना हसो कभी तो आया करो दुनियाके इस पार तो समझ जाओगे अल्फ़ाज कभी तो है दुवा कभी आफ़त , एक मर्ज है ! अपनेही हाथोंसे कर देता हूँ टुकडे टुकडे कभी दिलके, कभी यादोंके समझती है इसे पागलपन मेरा दुनियाभी बड़ी ख़ुदगर्ज है ! आते हो कभी तो कहते हो यह महफ़िल है…
इस कदर यूँ
इस कदर यूँ रुठा ना करो के ख़ुदासे भरोसा उठ जाए आँहे ऐसे तुम भरा ना करो के दिलके शहरही लुट जाए इस कदर यूँ .. गुस्से से ऐसे सुर्ख हो गाल और मुड़के चल देना तेरा जुल्फोंको झटका ना करो के चाँदसे चाँदनी टूट जाए इस कदर यूँ .. तेरी मस्त-निगाही से बेमौत मर…
अभी बाकी है
कुछ बता दिया है कुछ सुनाना अभी बाकी है थोड़े मान गए हैं थोड़ा मनाना अभी बाकी है बहुत संभाला है मैंने ईस दिल को तनहाईमे बेवफा वह नहीं पर ये क्या झुल्म हैं वफाईमे जानते ते हैं वह भी यह भी बताना अभी बाकी है उनका हँसना है जैसे चलती हो कटार कोई आज़मालो,…
एक ऐसा शहर..
अगर मैं कोई जादुगर होता हर एक पल को बुलबुला बना देता ख़त्म हो जाते कुछ लम्होंमें फिर कभी न आते यादोंमे याद आती भी तो हर याद को कश्ती बनाके पानीमे बहा देता फिर कभी ना मिलने के लिए कच्ची बुनियादोंपर खड़े घर और उनमे रहते झुठे लोग कई सावन आ गए जाने क्या…
कुछ राह चलते मुसाफ़िर..
कल रात चाँदभी अकेला था जाने किसकी राह देख रहा था लग रहा था के यह रात ऐसेही बीत जाएगी कुछ राह चलते मुसाफ़िर घर आए तब मैं यादोंमे कुछ तस्वीरें ढूँढ रहा था उनको मैंने ना रोका ना टोका जाने कहाँसे आए थे वे अपनी अपनी दास्ताँ सुनाने लगे मेरा मुकद्दर नया खेल खेल…