किसे पर्वाह है तेरी ऐ मजलूम ए जमाना
हर कोई ख़ुदा बननेकी कश्मकशमें है
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उठा लो कभी अपने ख़यालोंसे भी पर्दा
यह ना हो के पर्दा गिरे तो तनहा हो जाओ
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ना हुवे जख़्मको इतना भी ना सहलाओ
के जब लहू बहेगा सारे जा चुके होंगे
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तेरी ना सुनने की आदत जाती नहीं,
मेरी ना कहने की आदत जाती नहीं
कुछ ऐसा करते हैं की यह कारवाँ,
किसी ऐसे मोड़पे रुक जाए जहाँ
कोई कुछ बोलता नहीं कोई आवाज़ आती नहीं !
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बड़ा शौक़ है तुझे ज़ालिम, तो यह मकान तोड़ दे
उम्मीद का इम्तेहान ना ले, दिल सुमसान छोड़ दे
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मुडके देखा करो कभी पीछेभी
शायद कोई गलती दिखाई दे
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जिंदगी एक बारही मिलती है, बाकी सब बातें हैं दिल बहलानेके लिए
जीना ऐसे के वक़्त ए रुखसतमें राही, जिंदगी भी आए सहलानेके लिए