सच Posted on May 8, 2014April 12, 2017 By Rohit BapatPosted in Hindi/Urdu Poetry, Literature, Poetry सच बिकता नहीं सच की आड़ में ख़ामोशी है बहाना कुछ बोला न जाए चुप रहाभी न जाए ज़माना है अंजान या यह भी है कोई फ़ितना ए सितम सच कहा न जाए और सहाभी न जाए Spread the love