सच

सच बिकता नहीं
सच की आड़ में
ख़ामोशी है बहाना
कुछ बोला न जाए
चुप रहाभी न जाए

ज़माना है अंजान
या यह भी है कोई
फ़ितना ए सितम
सच कहा न जाए
और सहाभी न जाए

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