पधारो नी बालमवा
मनवामें मारो
तो घुँघट खोलूँ
तोसे बोलूँ
सावरा छब तोरी
कनखियोंसे तोलूँ
पधारो नी बालमवा
अंगनामे मारो
तो दीप जलाऊँ
तोसे खिलाऊँ
हाथोंसे अपने तोरी
नजर उतार लाऊँ
पधारो नी बालमवा
साँसोंमे मारो
तन मन बना लूँ
मैं उठा लूँ
घुँघट सारे ना जाने दूँ
ना मैं भी कहीं जाऊँ