मज़ा (शेर) Posted on December 22, 2014May 19, 2017 By Rohit BapatPosted in Hindi/Urdu Poetry, Literature, Poetry यह मज़ा भी कुछ और है तीर जब दिख रहा हो, फासले मिटाते हुवे बस उनसे कहो जब तीर चलाना मुस्कुराना, कुछ दर्द कम हो जाए Spread the love