जूठ किससे बोलोगे
टूटी शांखोंपे झुला न जाए
धुल जायेगी सारी कथा
मैला मन धुला न जाए
नींद ना आएगी रातको
दिन चैन न आने देगा
सत् की घासभी लागे रुई
झूठ के महलोंमे सुला न जाए
धोना है मन को अगर
तो खोलले अपनी आँखे
व्यर्थ है जीवन अगर
मन दर्पण खुला न पाए