जो कही ना गई

ऐसे तो ना देखो
थोड़े से जो डगमगा रहे हैं
यह क्या कम है
बेमानी इस दुनियामें
कुछ चिराग़ जगमगा रहे हैं

फ़ितरतमें नहीं जो
बरबादी का बिछाएं शेराह
आज़ मग़र उनके लिए
नहीं अपने लिए गा रहे हैं

बेनूर शेर मेरे
फ़िराक़से हैं किसीके
फ़िरभी हैं खड़े महफ़िल में
फ़िरभी उम्मीद जगा रहे हैं

यह ग़म नहीं है दोस्तों
ग़म तो वह है
जो कही ना गई हमसे वे
उसका मतलब लगा रहे हैं

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *