इश्क़ होनेसे पहले Posted on January 14, 2015May 23, 2017 By Rohit BapatPosted in Hindi/Urdu Poetry, Literature, Poetry नरम होठोंसे कभी कहती है कुछ चमकती है बिजली जैसे कभी ख़ामोश होती है फ़िरभी अब मैं सब समझने लगा हूँ फिरता था सुलझाते सवाल सारे इश्क़ होनेसे पहले और अब हर एक छोटीसी अदाओंसे उलझने लगा हूँ Spread the love