फिर भी

तूफ़ान है मुक़र्रर,
रातभर जलते आँखोंसे
फिर भी गुजरा नहीं हूँ मैं ..
उजड़ गए हैं
आशियाने, ईन शाखोंसे
फिर भी उतरा नहीं हूँ मैं ..

बह ग़या है पानी,
इस शहर के कई पुलोंसे
बादलोने बदल दिए,
आज सारे नक्श-ए-कोहन
फिर भी मुकरा नहीं हूँ मैं

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