हम तो नवाझीश की थे फ़िराक़ में
वे तो यूँ आए और यूँ ही चल दिए
राततो सो न सकी हवा के अज़ाब में
शमाँ बुझ गई तो ख़ुदही जल दिए
ऐतबार तो फिरभी है वफ़ा ए यार में
आहट आतेही फिरसे मचल दिए
बताके बताया नहीं कुछ जवाब में
सुकून ना मिला ना ही संभल दिए
जानाही था तो आए थे क्यूँ ख़्याल में?
काँटोंके सही बाग़ सारे मसल दिए