चाँद से कह दो अब उसकी जरुरत नहीं
मशरूक हैं हम दीदार ए यार के
हमें अब झूठे हुस्न को देखने की फुरसत नहीं
क्या खबर थी एक जवाबसे बदलेगी दुनिया
एक पलमें गर बदल जाती है जिंदगी
फिर उस बनानेवाले से अब कोई हसरत नहीं
किस तरह से शुक्रिया अदा करें तेरा सनम
सबकुछ लूटाकर बैठे हैं तुझ पर हम
अब तू जान भी लेले तो कोई शिक़ायत नहीं
कुछही पल में बरसने लगेंगे अब्र ए क़रम
और बह जाएंगे फासले सारे देखना
फिर हमें जुदा करे ऐसी कोई क़यामत नहीं