सफर था ऐसा सारे अपने पराये छुट गए हमसफर बनके जो चले वह साए छुट गए क्या ख़बर थी ये राहें यूँ दूर जाएँगी मंज़िल से पहले झूटी दोस्ती जताके साथ जो आये छुट गए एक शमाँ रौशन है फिर भी और सारी रात है बाक़ी सितारे आते थे कभी पर्दोंको उठाए छुट गए ईन…
Category: Hindi/Urdu Poetry
Hindi/Urdu Poems
ना जगाओ
मैं सोया नहीं हूँ दोस्तों ना जगाओ ख़्वाब खोल रहे हैं आँखे ना सताओ फ़ुरसत के बाद आई है शब् ए ग़म रहने दो यूँ गिरे हुवे हमें ना उठाओ परदा है तब तक महफूस हैं आँसू तजुरबा माझी बन सामने आए है किसी दिवानगी पर दिल ना लगाओ जहाँसे आए थे फिर वहीँ चले…
महफ़िल
बरबाद हो रहा है कोई कोई ग़म भुला रहा है ऐसा ही होता है दोस्तों ऐसा ही होता है भरी महफ़िलमे जब कोई रोता है शायर का घुट रहा है दम कोई जख़्म भुला रहा है आज मैं हूँ नज़ारा कल कोई और खड़ा था होके बेबस ईसी गलियोंमे पड़ा था गिरना था मुक़द्दर हाथ…
तो जी उठे हैं
तुम्हारे लबोंसे निकले तो जी उठे हैं जैसे दिल के कागज़ पर बड़े मायूस पड़े थे छुपतेछुपाते देखा किया डरता था इस जमानेसे क़दमक़दम पर जो बड़े जासूस खड़े थे अब जो जान आइ है यह भरम ना निकले यूँ तो बदनामी के वैसे जुलूस बड़े थे बस एक फ़र्याद है के मुड़ के न…
तू क़रीब ना आए
तू क़रीब ना आए तू दूर भी ना जाए कारवाँ ए जुस्तुजूमें अब सवार जो हूँ मंज़िल ना मिले और ग़ुरूर भी ना जाए मेरे यार तेरे लिए छोड़ दी जो दुनिया तुझसे खफ़ा नहीं पर सुरूर भी ना आए गुनाह है तो बता दे सज़ा भी तो मंजूर है शहादत ना मिले और कसूर…
जो कही ना गई
ऐसे तो ना देखो थोड़े से जो डगमगा रहे हैं यह क्या कम है बेमानी इस दुनियामें कुछ चिराग़ जगमगा रहे हैं फ़ितरतमें नहीं जो बरबादी का बिछाएं शेराह आज़ मग़र उनके लिए नहीं अपने लिए गा रहे हैं बेनूर शेर मेरे फ़िराक़से हैं किसीके फ़िरभी हैं खड़े महफ़िल में फ़िरभी उम्मीद जगा रहे हैं…
यह दुनियाँ बड़ी झूटी है
नशें मैं हम हैं ना जगाओ नशा तो ऊनपे हैं जो ना पी है सच और झूठ इनसे ना पूछो यह दुनियाँ बड़ी झूटी है हम क़ाफ़िर है या मोमिन यह तो बस ख़ुदा के है हाथ इन गुन्हेगारोंसे अब ना पूछो यह दुनियाँ बड़ी झूटी है एक तरफ़ जमाने का डर दूसरी तरफ़ है…
कारवाँ
हम उनमेसे नहीं जो मंज़िल मिलतेही कश्ती को भूल जाए नादाँ हैं वह जो समझते हैं के कारवाँ यही पे ख़त्म होता है !
वक़्त
ए दिल कुछ तो सब्र कर सुखा पत्ता भी नहीं गिरता अपने वक़्त से पहले ! चले गए जल्दी थी जिनको खुदा भी दुवा नहीं सुनता अपने वक़्त से पहले ! पाएगा मंज़िल एक दिन राही गाएगा यही एक दिन राही रौब न कर इतना खुदपे राही आसमाँ भी नहीं झुकता अपने वक़्त से पहले…
देर
आज समझा तेरी हमदर्दी का सबब हवा का रुख बदलते देर नहीं लगती कल जो दुवा अझीम थी आज हराम है तेरे ईमान को बदलते देर नहीं लगती कल तक क़ातिल था आज भगवान है ईन्सानियत भी बदलते देर नहीं लगती एक पल में सच्चाई गुम हो जाती है इन मुखौटों को बदलते देर नहीं…