पिछले कुछ सालोंसे हाथ मैं डफ़ली लेकर ख़ुदको ग़रीबोंका मसीहा बताने वाले लोगोंका बड़ा जथ्था सड़कोंपर दिखाई देने लगा है। यह सालोसाल छात्र बने रहते हैं, नागरिकोंके टैक्स पर नागरिकोंको भड़काते हैं। इन्हे ना हिन्दू से प्यार है ना हिंदुस्तान से लगाव। अपने मिथ्या स्वार्थ के लिए गरीबी को इस्तेमाल करते हैं , गुंडागर्दी करते…
Category: Hindi/Urdu Poetry
Hindi/Urdu Poems
कुछ शेर
किसे पर्वाह है तेरी ऐ मजलूम ए जमाना हर कोई ख़ुदा बननेकी कश्मकशमें है _____ उठा लो कभी अपने ख़यालोंसे भी पर्दा यह ना हो के पर्दा गिरे तो तनहा हो जाओ _____ ना हुवे जख़्मको इतना भी ना सहलाओ के जब लहू बहेगा सारे जा चुके होंगे _____ तेरी ना सुनने की आदत जाती…
मुझे याद करना
मुझे याद करना, तूफ़ानके गुजर जाने के बाद वैसेही नहीं रहते, हालात सुधर जाने के बाद तुझे लगा होगा, के नाराज़ हो जाऊँगा तुझसे मैंने छोडी थी उम्मीद, तेरे मुकर जाने के बाद कितने बदलते हैं चेहरे, इंसान भी बदलते हैं बदलते हैं मानें, इधर से उधर जाने के बाद पर निकल आए तो, नशेमन…
जिम्मेदारी
मैं जानता हूँ मेरे अल्फाजके कोई मायने नहीं है बस के खुदाने शायर बना दिया है जिम्मेदारी है आफताब नहीं हूँ पर चिंगारी तो बन चुका हूँ मैं कभी जलना है तो कभी जलाना है जिम्मेदारी है हर पेड़ जानता है अपनी औक़ात ए आशियाना बस के लोग बारिशमें पनाह लेते हैं जिम्मेदारी है जहन्नुमसे…
शहरोंमें मरकर जीने वाले
शहरोंमें मरकर जीने वाले तुने देखा ही क्या? जिंदगीका मातम करने वाली रुदालियॉं देख तुझे क्या पता न हुवे जुल्म़पे रोनेकी लज्जत? बस तेरी मेहनतपे जलनेवालोंकी गालीयॉं देख शहरमें कहाँ है मुशक्कत आसान है सबकुछ मुश्क़िलोंपे रोनेवालोँ को मिली तालीयाँ देख हर शाख पे उल्लू बैठा हो यह जरूरी तो नहीं दूसरी को सब्ज़ होते…
तुम तो नहीं थे बेवफ़ा
हजार तीर चुभे हैं दिलमें एक और सही खूँ तो बचा जितना था उतना ही बहेगा ! हर कतरा कहेगा तुम तो नहीं थे बेवफ़ा .. तुम तो नहीं थे बेवफ़ा हर शहर का अंजाम है खंडहर हो जाना मेरा नाम ना सही खंडहर तो बचा रहेगा ! हर पत्थर कहेगा मरूँगा मैं कितनी दफ़ा…
गुजरा दिन
गुजरा भी तो क्या गुजरा यह दिन सतानेवाली रात भी महबूबा लग रही है कोई क्या समझे मेरे दिल पे क्या गुजरी है धुप में जलके राख होती तो बेहतर होता हर एक ख़्वाहिश रूबरू सुलग रही है कुछ दिन ने साथ दिया होता तो बात बनती शाम होने की फ़िराक मैं है रात कल…
बेवकुफ़ियाँ
वह बेवकुफ़ियाँ ही हैं जिन्होंने जीना सिखाया वरना सही करते करते कब के बिगड़ जाते हम धुपमें सुलगते हुवे सीखा ख़्वाबोंको सींचना वरना बारिश याद करते कब के उजड़ जाते हम मेरा होनाही है सबूत मेरे होने का दोस्तों गर दुनिया की सुनते तो खुद से बिछड़ जाते हम
सूरज को ढलना था
सूरज को ढलना था सो ढल गया आज फिर एक मौसम बदल गया पंछियोंका बसेरा भी क्या बसेरा पंछी ऊब गया सो निकल गया ख़्वाब ख़त्म हो जाए तो पूरा हो क्यों किसीका फ़साना अधूरा हो क्या दिन क्या रातका अंधेरा अपना वक़्त हुवा सो निकल गया मैं मुसाफ़िर मेरा क्या ठिकाना जहाँ राह मुड़े…
अब तू ही
अब तू ही छोड़ चली जा यादोंको वरना मुश्किल है तुझे भूल जाना या तो एक बार दिलकी राख कर जा क्यों है तुझे उसे रोज रोज जलाना दवा बता जिससे मेरा दर्द हो कम या तो जहर दे ख़त्म कर फ़साना ख़ुदसेही आँखमिचोली करे राही भुलती नहीं मगर तू याद आना