कभी इधर कभी उधर
फिरते हैं दरबदर
कभी शाखोंपर
बेक़रार यह जुगनू
फ़लकसे उतरे
कई सितारे जैसे
न जाने क्या ढूंढ़ते हैं
इन तनहा राहोंपर
बेक़रार यह जुगनू
खुदसे ही रौशन
थोडे बेबाक़ यह
जिंदा होते हैं रातमें
फिर बिगड़ते अंधेरोपर
बेक़रार यह जुगनू
मैं तो थक चुका हूँ
कलम रख चुका हूँ
फिर क्यों मंडराए
भीगे कागजोंपर
बेक़रार यह जुगनू
कुछ राते हैं ऐसी
भूली बाते है ऐसी
लिख जाते हैं कंबख्त
उन्हें टूटी दिवारोंपर
बेक़रार यह जुगनू