मनोगत:
श्रेष्ठ मराठी संत, संत सोयराबाई का “अवघा रंग एक झाला” यह अभंग पांडुरंग के हर भक्त को ज्ञात है। मैं इस ब्लॉगमें इस अभंग का हिंदी अनुवाद और भावार्थपर टिपण्णी कर रहा हूँ। संत सोयराबाई वारकरी संप्रदाय के बहुत श्रेष्ठ संतोंमेसे एक हैं। वे संत चोखामेळा की पत्नी और शिष्या थी। जातीसे महार (दलित) होने कारण उन्हें और उनके परिवारको बहुत दुःखोंका सामना करना पड़ा।
मैं समझता हूँ के यह मेरा कर्तव्य है के उस समाज ने किये अत्याचारोंके लिए मैं संत सोयराबाई और उनके परिवारसे क्षमा माँगे।
मैं खुद हिंदी भाषिक नहीं हूँ लेकिन फिरभी प्रयास कर रहा हूँ के मराठी अभंगोंका सन्देश केवल मराठी बोलनेवालोंतक ही सीमित ना रहे। हर किसीको इस अध्यात्मिक अमृतका अनुभव करनेका अधिकार है। यदि मेरे हिंदी अनुवाद या व्याकरणमें कोई भूल हो गई हो तो क्षमा करें।
अभंग
अवघा रंग एक झाला । रंगि रंगला श्रीरंग ॥१॥
मी तूंपण गेले वायां ।पाहतां पंढरीचा राया ॥२॥
नाही भेदाचें तें काम ।पळोनि गेले क्रोध काम ॥३॥
देही असोनि विदेही ।सदा समाधिस्त पाही ॥४॥
पाहते पाहणें गेले दूरी ।म्हणे चोखियाची महारी ॥५॥
अनुवाद और टिपण्णी
अवघा रंग एक झाला । रंगि रंगला श्रीरंग ॥१॥
भाषांतर:
सब रंग एक हो रहे हैं, उस रंगमें श्रीरंग याने विष्णु भगवान का रंग दिख रहा है।
टिपण्णी:
मराठीमें रंग केवल रंग याने लाल-पीला रंग इसी अर्थसे इस्तेमाल नहीं होता। मराठीमें रंग यह शब्द अवस्था, मानस, विचारधारा इन अर्थोंसे भी इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए यह पंक्तिमे संत सोयराबाई यह कहना चाहती हैं के, सिर्फ बाहरी रंग नहीं मानसिक और आध्यात्मिक रूपसे अंतरंग भी विष्णुमय हो गया है। सरे विचारोंमें विष्णु है। यह पंक्ति एक भक्त के द्वैत अद्वैत की यात्रा का भी वर्णन करती है।
मी तूंपण गेले वायां ।पाहतां पंढरीचा राया ॥२॥
भाषांतर:
मैं और तुम यह भेद का अंत हो गया, जब मुझे पंढरपूर के स्वामी/राजा याने विठ्ठल भगवान के दर्शन हुवे।
टिपण्णी:
मराठी संत साहित्यमें यह मैं और तू का उल्लेख दिखाई देता है. इसका सीधा सीधा मतलब है मैं और तू याने मैं और तुम अलग हो यह भावना। जो अद्वैत सिद्धांत के बिलकुल विरुद्ध है। संतोंने सदा इस आध्यात्मिक और भावनिक भेदभाव का विरोध किया है। वास्तविक रूपमें हम सब एक हैं, यही सिद्धांत मराठी संत अपने अभंगमें पढ़ाते हैं। यही संत सोयराबाई कह रही हैं के जब उन्हें पांडुरंग के दर्शन हुवे, उन्हें उस परमतत्त्व के अस्तित्व का ज्ञान हुवा और यह मैं और तुम का भेदभाव झड़ गया।
यहाँ पर पांडुरंगके दर्शन का महत्त्व समझना जरुरी है। क्योंकी हमारे लिए पंढरपूर के पांडुरंग के दर्शन एक साधारण घटना है। पर संत सोयराबाई और उनके पति संत चोखामेळा को पिछड़े जाती के होने के वजह से मंदिर में प्रवेश निषिद्ध था। इसलिए यह दर्शन सोयराबाई दुर्लभ था !
नाही भेदाचें तें काम ।पळोनि गेले क्रोध काम ॥३॥
भाषांतर:
यहाँ कोई भेदभाव नहीं चलता, यहाँ तो क्रोध और काम भावना का सर्वनाश होता है।
टिपण्णी:
संत सोयराबाई, अद्वैत सिद्धांत के प्रकाशमें यह कह रही हैं के यह मार्ग (वारकरी पंथ) ऐसा मार्ग है जहाँ किसीभी तरह का भेदभाव नहीं चलता। उसका अस्तित्त्व भी नहीं होता।इस मार्ग पर चलो तो तुम्हारे विचारोंसे और मनसे क्रोध और काम (लालसा) जैसे शत्रु निकल जायेंगे। तुम मानसिक रूप से, वैचारिक रूप से और आचरणसे शुद्ध रहोगे। यही भावना का अनुभव संत सोयराबाई बता रही हैं।
देही असोनि विदेही ।सदा समाधिस्त पाही ॥४॥
भाषांतर:
देहमें होकर भी देह-भावना से परे, वह परमतत्त्व विदेही याने अनेक प्रकारके ज्ञानसे युक्त है। उसे मैंने (मुझमें) सदा ही समाधी के अवस्थामें देखा है।
टिपण्णी:
यह पंक्ति परमात्मा, परमतत्त्व के बारेमें लिखी गयी है। संत सोयराबाई कहती हैं के यह परमतत्त्व मेरे देहमें होकर भी (दुनियाके कणकण में परमात्मा समाया हुवा है) देह और दैहिक भावना से परे है। यह विदेह अवस्था है जहाँ सिर्फ सत्य का प्रकाश निवास करता है और हर तरफ सिर्फ उस परमतत्त्व का ज्ञान मिलता है। इस अवस्थामें इंसान निर्गुण का अनुभव कर पाता है। यह परमतत्त्व सारे ज्ञान और सत्य का स्त्रोत है। संत सोयराबाई कहती हैं के उन्होंने इस परमतत्त्व का अनुभव खुदमें किया है।वे इस परमतत्त्व को सदा खुदमें समाधी की अवस्थामें देखती हैं। मेरा मानना है के संत सोयराबाई यहाँ उस परमतत्त्व की अनुभूतिका वर्णन कर रही हैं।
पाहते पाहणें गेले दूरी ।म्हणे चोखियाची महारी ॥५॥
भाषांतर:
कहे चोखामेळा की महारी (संत सोयराबाई), अब देखना दिखाना सब पीछे छूट गया है।
टिपण्णी:
अब इस अवस्थामें जाकर संत सोयराबाई कहते हैं के अब देखना क्या और दिखाना क्या? सब कुछ तो अनुभव कर लिया जो पांडुरंग के दर्शन हुवे, भेदभाव चला गया, अद्वैत की अनुभूति हुई। अब देखनेको क्या रह गया?
तो यह था संत सोयराबाई के “अवघा रंग एक झाला” इस अभंग का अनुवाद और टिपण्णी। जरूर शियर करें।
पुराने ब्लॉग्स
its really useful. After understand the spiritual meaning, will enjoy the abhang more trully…..
Being Gujarati, I am not as good in marathi but its my most favorite abhang and i revering Gana saraswati Kishori Amolkar as god of music.