हे जननी जन्मभूमी

तू अभंग कारुण्यमूर्ती तू रवी दिव्यसम स्फूर्ती तू पतित पावन गंगा सागराची अमर्त्य उर्मी हे जननी जन्मभूमी सुफला वरदा तू धरिणी तृणसमान स्वर्ग या चरणी विश्वमुकुटी तू राजमणी तव गाऊ कशी आरती मी हे जननी जन्मभूमी हे माते मंगलदायिनी देवी शौर्यरत्न धारिणी कर जोडून तुज वंदितो मनमंदिराच्या धामी हे जननी जन्मभूमी तव नाम जणूकी स्तोत्र…

रात फिरसे आयी है!

लो फिर आयी , सताने मुझे तनहाई कि चादर देने आयी है हाय ये रात बादलोसे उतरके झुठे सपने दिखाने आयी है हर बार इस राह पर यादोंके काफिलेसे गुजरते है इनमे होता था एक शहर अब वे मारे मारे फिरते है मैं जितना भागता हुं उतनीही पास वोह आती है मैं डर भी जाऊ…

शर्त

मंजूर है तेरी हर शर्त बस यह साबित करके दिखा के तू है कितने जले बदन कटे से मन टूटे सपने गिरे हुए हम सबको तसल्ली देते हो देते हो अपने करम का रहम मैं वह भी वहम पीने को तैयार हूँ बस … हसता है तू पत्थरोंमे दिवारोंपे लटकी तस्वीरोंमे अपने लिए बना दिया…

उम्मीद

होने को तो कुछ भी हो सकता है मगर जो मेरे साथ हुवा उसकी उम्मीद न थी मान चले थे जिस को हस्ती का सबब उस खुदा ने छोड़नेकी कोई बईद ना थी तेरे करमसे हर साँस चलती है, तू कह दे तो यह जान क्या है आसमान भी ले आऊँ तू ना कहता तब…

मुझको रुलानेवाले

मुझको रुलानेवाले क्या हुवा आज, के तेरी भी आँखें नम पड गई ? कहते हैं फासलोंसे मिट जाते हैं फासले मैं तुझसे दूर जाना चाह रहा था कभी आज क्या हुवा जो नजदीकियाँ यूँ कम पड गई ? जिंदगी तो कारवाँ है कभी ना कभी तो मिल ही जाएंगे आज क्या हुवा जो आजकी मुलाक़ात…

सीधी सीधीसी बात है राही

सीधी सीधीसी बात है राही पहले जैसीही रात है राही कितना चलेगा आखीर रहनी परछाई साथ है राही सीधी सीधी बात है राही .. मुकद्दर में है तो मिलेगा फिरदोस नहीं तो फिर यह दुनिया ही पाक सही बाकी तो खाली हाथ है राही सीधी सीधीसी बात है राही .. आँखोंमे बादलोंकी सियाही दिल में…