आज समझा तेरी हमदर्दी का सबब
हवा का रुख बदलते देर नहीं लगती
कल जो दुवा अझीम थी आज हराम है
तेरे ईमान को बदलते देर नहीं लगती
कल तक क़ातिल था आज भगवान है
ईन्सानियत भी बदलते देर नहीं लगती
एक पल में सच्चाई गुम हो जाती है
इन मुखौटों को बदलते देर नहीं लगती
दोस्त कब दुश्मन बन जाए यह ना पूछो
ऐसे क़िरदार को बदलते देर नहीं लगती
इनके हाथ हो तो हर एक आवाज़ दब जाए
पैमाना ए इन्साफ बदलते देर नहीं लगती
कल जहाँ खड़ा था आज भी वही खड़ा हूँ
वरना ईन्सान को बदलते देर नहीं लगती
मुझे कहते हैं मैं वक़्त की नहीं सुनता
मैं कहता हूँ मैं दिल की सुनता हूँ क्योंकी
ईस वक़्त को बदलते देर नहीं लगती !