मन होया जे फ़कीर

मन होया जे फ़कीर
ते किथ्थों कासी मक्का ?
आँख जांदी ओथे मैनूँ
यारही जगविच दिखदा ..

मन होया जे फ़कीर
मन तुझबिन सुखना पाई
एक तू न मिलेया तेरे
दीदारनुं तरसे राही ..

मेरे यार जेया सोहणा
लगदा न कोई होर
गलीगली गाता फिरे
मन होया जे फ़कीर ..

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