मुझपे ना हसो
कभी तो आया करो दुनियाके
इस पार तो समझ जाओगे
अल्फ़ाज कभी तो है दुवा
कभी आफ़त , एक मर्ज है !
अपनेही हाथोंसे
कर देता हूँ टुकडे टुकडे
कभी दिलके, कभी यादोंके
समझती है इसे पागलपन मेरा
दुनियाभी बड़ी ख़ुदगर्ज है !
आते हो कभी तो
कहते हो यह महफ़िल है
छोड़ जाते हो एक पलमें
कहके अब वह बात ना रही
अब इसमें ना वह दर्द है ?
एक खुदा से रौशन
मेरा भरम, तक़ल्लुफ़-ए-हस्ती
कोरे कागज़में रखाही क्या है
स्याह स्याहीसे आंसुओंसे
उतारा ना जाए यह ऐसा क़र्ज़ है ..
अल्फ़ाज कभी तो है दुवा
कभी आफ़त , एक मर्ज है !