उठी हैं पलकें, ख़त्म है कहानी
अंगड़ाई ले रही है, फुलोंकी रानी
कहानी थी एक सहजादेकी
उतरा था जो बादलोंसे
ढूंढ रहा था, सपनोंकी रानी
हर डगर हर पल सालोंसे
फिर जाने की, सोच रहा था
बैठा था उदास होके
हवा चली ऐसी, कोई फूल हँसा
नूर ए जन्नत लेके
उसे छू गई हवा, तो देखा उसने
वह फूल उसे मिला था
हाथोंमे वह नूर, आँखोंमे फिर
वह सपना खिला था
आगे शुरू हुई एक, हसीन नई कहानी
और हुई ख़त्म, वह दास्ताँ पुरानी
कल फिर सुनाऊँगा, आगे की कहानी
कल फिर आएगी, एक रात सुहानी
शहजादे की गोदमें, फिलहाल मेरी
आँखे खोल रही है, वह फूलोंकी रानी !