कुछ राह चलते मुसाफ़िर..

कल रात चाँदभी अकेला था
जाने किसकी राह देख रहा था
लग रहा था
के यह रात ऐसेही बीत जाएगी
कुछ राह चलते मुसाफ़िर घर आए
तब मैं यादोंमे कुछ
तस्वीरें ढूँढ रहा था

उनको मैंने ना रोका ना टोका
जाने कहाँसे आए थे
वे अपनी अपनी दास्ताँ सुनाने लगे
मेरा मुकद्दर नया खेल खेल रहा था

रातभर चलती रहीं बातें
गुफ़्तगू होती रही
आँख खुली तो वे ओझल हो गए थे
मैं हैरान खड़ा था

फर्श पर कुछ अल्बम
और कापियाँ बिखरी हुई थी !

Rolla, MO (US)

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