कारवाँ Posted on May 24, 2014April 25, 2017 By Rohit BapatPosted in Hindi/Urdu Poetry, Literature हम उनमेसे नहीं जो मंज़िल मिलतेही कश्ती को भूल जाए नादाँ हैं वह जो समझते हैं के कारवाँ यही पे ख़त्म होता है ! Spread the love